दो धुरमूलीय राज घरानों ने अमरत्व को प्राप्त मीरां जैसे व्यक्तित्व के जनक होने का गौरव-भाव जानबूझकर क्यों छोड़ दिया? वह कौन सी सामाजिक सांस्कृतिक एवं मनोवैज्ञानिक गुत्थियां थीं जिनके रहते मीरां के विशिष्ट, अंतर्मुखी, हठीले और अकड़ व्यक्तित्व का गठन हुआ था। तत्कालीन सामाजिक-सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक लौकिक धरातल के साथ मीरां के व्यक्तित्व का समीकरण बिठाने के प्रयास को अपने ढंग का प्रथम व्यवस्थित प्रयास कहा जा सकता है। मुख्य लक्ष्य लोक- साक्ष्य में मीरां और मीरां में लोक- साक्ष्य की तलाश है तथा मध्यकालीन वर्जनाओं- मर्यादाओं से बंधी एक राजबधू वह भी विधवा बागी बनकर लोक में ऐसे कैसे रल मिल गई कि मीरां में लोक और लोक में मीरा मूर्त उठी ।
-डॉक्टर आलम शाह खान।
मीरा लोकतात्त्विक अध्ययन,
2019, साहित्य भंडार
इलाहाबाद
"यह किताब मीरां को लगभग पहली बार उसके स्थानिक समाज संस्कृति और भाषा के बीच रखकर समझती पहचानती है "-माधव हाड़ा।
"इस पुस्तक का महत्व मीरां के संबंध में यह है कि मीरां के समय समाज और परिवेश के संबंध में मनगढ़ंत उत्साही निष्कर्षों तक जाने से रोकती है।" -पल्लव